महंगे शौक छोड़ जरूरतमंदों की सेवा ही लक्ष्य, 280 बच्चों की शिक्षा का उठाया बीड़ा

मोहाली। कभी महंगी गाड़ियों में चलना और ज्वेलरी पहनना उनका शौक था। दुबई में अच्छा कारोबार था लेकिन 2011 में मां की रीढ़ की हड्डी में चोटलगी। इससे वह उठने बैठने और चलने से लाचार हो गई। मां का इलाज कराने के लिए दुबई छोड़ गांवरतवार लौट आए। छह साल तक अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों के चक्कर काटे। इसके बाद भी मां पूरी तरह ठीक नहीं हुई। जब मां जीएमसीएच-32 में भर्ती थीं तो इस दौरान देखा कि 22 रुपये का इंजेक्शन न मिलने के कारण एक बच्चे ने दम तोड़ दिया। इस घटना ने स्वर्णजीत सिंह को अंदर से झकझोर कर रख दिया। इसके बाद वह जरूरतमंद लोगों की सेवा की राह पर निकल पड़े। उनके साथ लोग जुड़ते चले गए। अब तक कई लोगों की जिंदगी बदल चुके हैं। अभी 280 बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठा रहे हैं। संवाद पर्यावरण को बचाने के लिए पौधे बांटने निकले गांव रतवार निवासी स्वर्णजीत सिंह संवाद

मोहाली जिले के गांव रतवार के रहने वाले स्वर्णजीत सिंह ने बताया कि समाज सेवा की शुरुआत एक अखबार में छपी खबर से की। पता चला कि संगरूर में एक किसान ने आत्महत्या कर ली। मौत के बाद परिवार विशेष की आर्थिक हालात खराब हो चुकी थी। मां की बीमारी के बावजूद कुछ पैसे इकट्ठे किए और कुछ करीबी दोस्तों से मदद ली। इसके बाद पीड़ित किसान परिवार की मदद करने पहुंच गया। 2016 से दोस्तों के साथ पीजीआई के पास स्थित गुरुद्वारा साहिब में हर महीने दवा और अन्य जरूरत के सामान बाँट रहे हैं। लोगों की मजबूरी को देखते हुए हर महीने की जगह यह सेवा हर हफ्ते शुरू कर दी गई और एक दिन यह रोजाना की जाने वाली मदद में बदल गई। 11 साल में हर अस्पताल और हर तरह के मरीजों को देखा। 2016 में साथियों ने ग्रुप को सर्वे ट्यूमैनिटी सर्वे गॉड संस्था का नाम दे दिया।

स्वर्णजीत सिंह ने बताया कि वह रीढ़ की हड्डी की बीमारी से पीड़ित लोगों की हर संभव मदद करते हैं। इसके अलावा पर्यावरण बचाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। मरीजों के लिए दवाई और पौधों का लंगर लगाते हैं। रीढ़ की हड्डी की बीमारी से पीड़ित मरीजों की रतवाड़ा गांव में बने सेवा केंद्र से इलाज करवा रहे हैं। रीढ़ की हड्डीसे पीड़ित 170 लोगों को नया जीवन दिया है।

स्वर्णजीत सिंह ने बताया कि उनके साथ आजकई रिटायर्ड ऑफिसर, प्रोफेसर, पीजीआई के डॉक्टर, आईटी प्राइवेट संस्थानों से लोग जुड़े हैं जो समाज सेवा के कार्य में सहयोग कर रहे हैं। हर साल पांच से छह जरूरतमंदों के घर बनाए जाते हैं। 280 बच्चों की पढ़ाई को पूरा खर्च उठा रहे हैं। सात लड़कियों को जीएनएम करवाई जा रही है। एक लड़की का एमबीबीएस का खर्च उठाया जा रहा है।

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