हर तरफ से हारे तन-मन को उम्मीद के पंख देते चंद लोग और उनकी संस्था

वर्ष 2017 में भाई की शादी का कार्ड देने के लिए घर से निकले आसिफ अली खान उस दिन आखिरी बार अपने बूते चले। 11वीं में पढ़ने वाले आसिफ के सपनों को पीछे से आ रही कार ने | ऐसा रौंदा कि जिंदगीभर के लिए किसी के सहारे रहने को मजबूर हो गए। रीढ़ की हड्डी में चोट के चलते आसिफ के शरीर का निचला हिस्सा | बिलकुल काम नहीं करता। उन्हें वहां से दिल्ली के लिए भेज दिया गया। पेशे से दर्जी पिता के लिए आसिफ का इलाज और घर का खर्च दोनों उठाना मुश्किल हो रहा था। हार कर परिवार वालों ने आसिफ को ऐसे ही छोड़ दिया। जीवन से उम्मीद खेड़ अकेले एक कमरे में जीवन बिता रहे आसिफ के काम वह शख्स आया जो न उनके परिवार से था और न ही उनके धर्म का। पढ़ाई के दौरान एक जगह मोटरसाइकिल का काम सीख रहे आसिफ की दोस्ती लक्खन कश्यप से हुई। हादसे के बाद बिस्तर तक सीमित उनकीदुनिया को लक्खन ने यह दिखाई। उन्होंने न केवल आसिफ की वीडियो बनाकर मदद की गुहार लगाई बल्कि जबतक सहायता न मिली तबतक खुद अपनी दोस्त की सेवा की उसी वीडियो के सहारे सर्व ह्युमेनिटी सर्व गॉड (एसजीएसएच) की टीम आसिफ को लेने हाथरस (उत्तर प्रदेश) पहुंच गई और यहां पंजाब के खरड़ स्थित रतवाड़ा ले आए।

यहां आसिफ का ध्यान रखने वाले सोनू सिंह नैन कहते है, ‘सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का होता है हमारे लिए यहां हर व्यक्ति समान है। हमें इस से फर्क नहीं पड़ता कि कौन किसके आगे सिर झुका रहा है। भगवान तो मन इच होंदा ए… ‘ आसिफ की हालत में अब सुधार नजर आ रहा है मजबूर लोगों की इस शरणस्थली में रियास जनसत्ता एम और उनकी पत्नी सानी एक महीने पहले रियाज के इलाज के लिए यहां आए है। वर्ष 2003 में एक बाइक हादसे में रियाज की रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण उनका निचला शरीर काम नहीं करता। सोशल मीडिया के जरिये जैसे ही उन्हें एसजीएसएच का पता चला तो उन्होंने तुरंत इनसे संपर्क कर यहां पहुंचे कोने में जुहर की नमाज अता कर रही रियाज की पत्नी सानी भाषा बाधा के चलते कुछ कह तो नहीं पाई लेकिन उनकी नम आंखें और होंठो पे मुस्कुराहट उस उम्मीद को दर्शाती है जो यहां उन्हें इन लोगों को बीच मिल रही है। इसी बीच रियाज की पट्टी बदलने स्वयंसेवक ज्योति केवलानी वहां पहुंची और उन्होंने बताया, ‘हम सब यहां एक दुसरे की मदद करते है। यह हम सबका एक छोटा सा परिवार है बाहर क्या हो रहा है हमें उससे कोई मतलब नहीं है। यहीं हमारी दुनिया है।’

ओड़ीशा से यहां आई 23 वर्षीय लीलीमा बैदई सकारात्मक ऊर्जा का अथाह स्त्रोत है। उसके शरीर का निचला हिस्सा काम नहीं करता, पर लीलीमा के पास इसका दुख मनाने के बजाय हजार खुशी के कारण है। पेट के बल लेटे-लेटे वह अपना पूरा दिन बुनाई में बिताती है। ‘ये देखो गुड़िया. यह मैंने बनाई है। यह जो कैप है न यह मैंने अपने लिए बनाई है… ऐसा ही एक मैं आपके लिए भी बना दूंगी। और दिखाऊं… यह बच्चों के मोजे, छोटे-छोटे फ्रॉक, सब क्रोशिया से बनाया है।’ वह 18 साल से बिस्तर पर है। हालांकि, उसके पूरे तरह ठीक होने के आसार बहुत कम है लेकिन फिर भी उन्हें बिस्तर से व्हीलचेयर पर लाने के लिए एसजीएसएच की पूरी टीम लगी हुई है। लीलीमा पिछले कल पहली बार व्हीलचेयर पर बैठी।


बकौल एसजीएसएच के संस्थापक स्वर्णजीत, ‘इस संस्थान में आना वाला शख्स हिंदू हो या मुसलमान, चाहे वह ईसा मसीह को माने या फिर गुरुग्रंथ साहिब के आगे मत्था टेके, इससे यहां किसी को फर्क नहीं पड़ता। ईश्वर का स्मरण करते हमें हर शख्स में उसकी परछाई दिखाई देती है नफरत, मनमुटाव का मौका ही नहीं मिलता। यह भारत है… यहां हमेशा से सांप्रदायिक सद्भावना वाला माहौल रहा है एक दूसरे की मदद करना हमारे खून में है।’

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